देहरादून

पहाड़ों पर इस बार बुरांश समय से पहले खिल गया, इससे वैज्ञानिक चिंतित थे ही, अब उत्तराखंड के पहाड़ों से सेब, आड़ू, आलूबुखारा, नाशपाती भी गायब होने लगे हैं। पर्वतीय ट्री लाइन हर साल कई फीट ऊंचाई वाले क्षेत्रों की ओर शिफ्ट होने लगी है। वैज्ञानिक इसकी वजह ग्लोबल वार्मिंग बता रहे हैं। इसका असर पहाड़ के देवदार से लेकर मैदान में आम के पेड़ों तक दिखने लगा है।
इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट से पता चला है कि पूर्वी हिमालय में खासकर सर्दियों और वसंत के दौरान तापमान बढ़ रहा है। जिससे देवदार के पेड़ों में 38 फीसदी तक की गिरावट आई है और वृक्षरेखा अधिक ऊंचाई की ओर स्थानांतरित हो रही है। इस परिवर्तन से जहां बुग्यालों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। वहीं मैदान में भी पेड़ पौधे सुरक्षित नहीं हैं। कई जगह आम के पेड़ों में बौरों का आना जल्दी शुरू हो गया था।
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Uttarakhand: प्रदेश के फलों पर ग्लोबल वार्मिंग का हमला, कहीं बागवानी का क्षेत्र घटा तो कहीं उत्पादन आधा हो गया
राजेश एस. राठौर, अमर उजाला, देहरादून Published by: रेनू सकलानी Updated Sat, 24 May 2025 03:34 PM IST
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सार
6150 Followersउत्तर काशी
प्रदेश के फलों पर ग्लोबल वार्मिंग का असर दिखाई दे रहा रहै। कहीं बागवानी का क्षेत्र घटा तो कहीं उत्पादन आधा हो गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि पहाड़ के पेड़-पौधे जलवायु परिवर्तन से तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं।

फ्रूट – फोटो : संवाद
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पहाड़ों पर इस बार बुरांश समय से पहले खिल गया, इससे वैज्ञानिक चिंतित थे ही, अब उत्तराखंड के पहाड़ों से सेब, आड़ू, आलूबुखारा, नाशपाती भी गायब होने लगे हैं। पर्वतीय ट्री लाइन हर साल कई फीट ऊंचाई वाले क्षेत्रों की ओर शिफ्ट होने लगी है। वैज्ञानिक इसकी वजह ग्लोबल वार्मिंग बता रहे हैं। इसका असर पहाड़ के देवदार से लेकर मैदान में आम के पेड़ों तक दिखने लगा है।
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इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट की एक रिपोर्ट से पता चला है कि पूर्वी हिमालय में खासकर सर्दियों और वसंत के दौरान तापमान बढ़ रहा है। जिससे देवदार के पेड़ों में 38 फीसदी तक की गिरावट आई है और वृक्षरेखा अधिक ऊंचाई की ओर स्थानांतरित हो रही है। इस परिवर्तन से जहां बुग्यालों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। वहीं मैदान में भी पेड़ पौधे सुरक्षित नहीं हैं। कई जगह आम के पेड़ों में बौरों का आना जल्दी शुरू हो गया था।
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फल उत्पादन में करीब 53 प्रतिशत की गिरावट
विशेषज्ञों के अनुसार इसके लिए बेमौसम बारिश और सामान्य से ज्यादा गर्म होती सर्दियां जिम्मेवार हो सकती हैं। ऐसा ही कुछ सेबों के मामले में भी देखने को मिल रहा है। पहाड़ों पर बर्फबारी कम होने से इसकी पैदावार पर असर पड़ रहा है। बढ़ते तापमान के साथ उत्तराखंड के पहाड़ों से सेब, आड़ू, आलूबुखारा, खुबानी, नाशपाती गायब हो रहे। अल्मोड़ा में फल उत्पादन 84 फीसदी घट गया है, जो उत्तराखंड के सभी जिलों में सर्वाधिक है। इसी तरह चमोली में भी फल उत्पादन में करीब 53 प्रतिशत की गिरावट आई है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि पहाड़ों में पाए जाने वाले कई पेड़-पौधे बढ़ते तापमान के साथ तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं। ऐसे में यदि समय रहते ध्यान न दिया गया तो उनके लिए अस्तित्व को बचाए रखना कठिन हो जाएगा। उन्होंने कुछ क्षेत्रों में बर्फ की मात्रा में बदलाव करके कृत्रिम रूप से तापमान बढ़ाकर देखा कि पौधे बढ़ती गर्मी का सामना कैसे करते हैं, लेकिन अध्ययन के नतीजे निराशाजनक रहे। पौधे न तो खुद को गर्म तापमान के अनुसार बदल पाए और न ही पहाड़ की ऊंचाई पर तेजी से फैल पाए, ताकि वे गर्मी से बच सकें। आशंका है कि वे प्रजातियां समय के साथ विलुप्त हो जाएंगी।
सात वर्षों से गिर रही फलों की पैदावार
उत्तराखंड में बीते सात वर्षों से फलों की पैदावार चिंताजनक रूप से घट गई है। क्लाइमेट सेंट्रल की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016-17 में उत्तराखंड में 25,201.58 हेक्टेयर क्षेत्र में सेब का उत्पादन किया गया, जो वर्ष 2022-23 में 55 फीसदी की गिरावट के साथ घटकर महज 11,327.33 हेक्टेयर रह गया। इस अवधि के दौरान सेब के उत्पादन में 30 फीसदी की गिरावट देखी गई। नींबू की विभिन्न प्रजातियों में भी 58 फीसदी की कमी आई है। गौरतलब है कि 2016-17 में फल उत्पादन का कुल क्षेत्र करीब 177,324 हेक्टेयर था, वह 2022-23 में घटकर महज 81692.58 हेक्टेयर रह गया। इसी तरह जहां उत्तराखंड में 2016-17 के दौरान फलों का कुल उत्पादन 662847.11 मीट्रिक टन था, जो 2022-23 में घटकर 369447.3 मीट्रिक टन रह गया।
चमोली व अल्मोड़ा में फल उत्पादन घटा
जिलावार देखें तो टिहरी में बागवानी के क्षेत्रफल में सबसे ज्यादा कमी हुई। इसके बाद देहरादून है। हालांकि दोनों ही जिलों में इसके सापेक्ष फलों के उत्पादन में अधिक कमी नहीं देखी गई। दूसरी तरफ, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और हरिद्वार में बागवानी के क्षेत्रफल और फलों के उत्पादन दोनों ही में काफी गिरावट आई है। अल्मोड़ा में फल उत्पादन 84 फीसदी घट गया है, जो उत्तराखंड में सर्वाधिक है। वहीं चमोली में 2016-17 से 2022-23 के बीच बागवानी के क्षेत्रफल में महज 13 फीसदी की कमी दर्ज की गई, लेकिन फल उत्पादन में करीब 53 की गिरावट आई है। दूसरी तरफ उत्तरकाशी और रुद्रप्रयाग में बागवानी के क्षेत्रफल में क्रमशः 43 और 28 फीसदी की कमी होने के बावजूद फलों के उत्पादन में 26.5 और 11.7 फीसदी की वृद्धि देखी गई है।
गर्म और शुष्क होती सर्दियों से उत्पादन पर पड़ रहा असर
1970 से 2022 के बीच उत्तराखंड के औसत तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। उत्तरकाशी, चमोली, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग जिलों में बर्फ से ढका क्षेत्र साल 2000 की तुलना में 2020 में 90 से 100 वर्ग किमी तक सिकुड़ गया है। हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में अधिक सर्दी और बर्फ सेब, नाशपाती, आड़ू, आलूबुखारा, अखरोट, खुबानी जैसे फलों को फलने के लिए बेहद जरूरी है।
– सेब को दिसंबर से मार्च के बीच 1200 से 1600 घंटे के लिए सात डिग्री सेल्सियस से कम की चिलिंग आवश्यकता होती है। ऐसे में कम बर्फबारी के चलते सेब की गुणवत्ता और उत्पादन में कमी हुई है। – डॉ. रश्मि चमोली, एग्रोफॉरेस्ट्री विशेषज्ञ, वीसीएसजी यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री
